सफल नेता (पॉलिटिशियन) कैसे बने ?
आज का ब्लॉग काफी यूनिक है, मतलब थोडा अलग है क्यूंकि
आज बात आपके वीक पॉइंट की होगी, आपकी कमजोरियों की होगी, राजनीति एक मात्र ऐसा
क्षेत्र है जहाँ कभी-कभी किसी व्यक्ति की कमजोरी भी उसे पॉलिटिक्स में टॉप पर
पहुंचा देती है, जैसे पब्लिक स्पीकिंग में कमजोर होना, सोचो जरा कि किसी व्यक्ति को
यदि पब्लिक स्पीकिंग नहीं आती है तो क्या वो राजनीति के टॉप पर पहुँच सकता है,
हमारे सामने जैसे ही ये सवाल आता है हम तुरंत सोचने लगते हैं कि पब्लिक स्पीकिंग
के बिना कोई भी व्यक्ति पॉलिटिक्स में भला कैसे सफल हो सकता है पर क्या ये सच है?
क्यूंकि हमारे सामने कई ऐसे उदाहरण मौजूद हैं जो पब्लिक स्पीकिंग में निपुण न होते
हुए भी मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्री बने, यहाँ मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता
लेकिन वर्तमान राजनीति में आपने भी कई ऐसी घटनाएँ होते हुए देखी होंगी और देखकर
हैरत में पड़ गये होंगे कि भला ये व्यक्ति मंत्री कैसे बन गया, तो यदि आप भी पब्लिक
स्पीकिंग में थोड़े कमजोर हैं तो आपको इस पुरे राजनीतिक समीकरण को ध्यान से समझना
चाहिए जिसकी चर्चा हम आज इस ब्लॉग में करेंगे
Politics with Pankaj |
Kick-start your career as a politician
यहाँ एक सवाल और भी है जो लगातार पूछा जाता है कि मैं
जिस जाति से आता हूँ उसकी संख्या मेरे विधानसभा क्षेत्र में या मेरे राज्य में
काफी कम है तो क्या मैं राजनीति में सफल हो सकता हूँ? ये सवाल क्यूँ पूछे जाते हैं
क्यूंकि हमें लगता है कि पार्टी से टिकट मिलने के लिए या फिर चुनाव जीतने के लिए
हमारी जाति कि संख्या अच्छी होना बेहद जरुरी है और अगर ऐसा नहीं होगा तो कोई भी
पार्टी हमें टिकट नहीं देगी पर क्या हमारी जाति की संख्या कम होना वाकई में हमारा
कमजोर पक्ष है? राजनीति कूटनीतियों का खेल है और यदि आपने इसे समझ लिया तो आपकी
जाति की संख्या कम होने के बावजूद आप पुरे जातीय समीकरण को अपने पक्ष में कर सकते
हैं और वर्तमान राजनीति में तो इसका बखूबी इस्तेमाल भी हो रहा है, तो समझते हैं कि
यदि हम पब्लिक स्पीकिंग में कमजोर हैं या जातीय समीकरण हमारे पक्ष में नहीं है या
फिर हमारे पास राजनीति करने के लिए उतने पैसे नहीं हैं तो हमें राजनीतिक
कूटनीतियों का इस्तेमाल करके कैसे अपने पोलिटिकल कैरियर को एक नई दिशा देनी चाहिए
ताकि हमारी ये कमजोरी ही हमारी ताकत बन जाए
How to Get Into Politics
सबसे पहले बात जातीय समीकरण की, यदि आपको लगता है कि
आप जहाँ से चुनाव लड़ना चाहते हैं वहां आपकी जाति का वोटबैंक काफी कम है तो आप caste neutral politics का
इस्तेमाल करना शुरू करें. क्या है इसका मतलब, एक उदाहरण से समझते हैं, मान लो आप किसी विधानसभा से
चुनाव लड़ना चाहते हो और वहाँ मुख्य चार जातियाँ हैं. A, B, C
और D, और इन चारों में से आप किसी भी जाति से नहीं आते हो
और उस विधानसभा से अक्सर A जाति
का व्यक्ति चुनाव जीतता है क्यूंकि इस जाति की संख्या वहाँ सबसे अधिक है, तो अब
बाकी की तीन जातियाँ क्या करेंगी जिसकी संख्या वहाँ अच्छी तो है पर उस A जाति से थोड़ी कम है, वो उस A जाति के व्यक्ति को चुनाव हराने के
लिए किसी ऐसे व्यक्ति को वोट करेगी जिसकी छवि caste neutral की हो, मतलब सभी को साथ लेकर चलने
वाला. कई चुनावों में विधानसभा या लोकसभा प्रत्याशी caste neutral politics का
इस्तेमाल कर भारी मतों से चुनाव जीतते हैं पर इस caste neutral politics का सबसे दिलचस्प इस्तेमाल
राजनीतिक पार्टियाँ करती हैं और कैसे करती हैं वो इसका इस्तेमाल, आइए इसे समझते
हैं
How-to-become-a-politician
कई राज्यों में जातीय समीकरण कुछ ऐसा होता है कि वहां
कि जो प्रमुख दो या तीन जातियाँ होती हैं वे चाहती हैं कि मुख्यमंत्री उनकी जाति
से हो पर पार्टियों के सामने दुविधा ये होती है कि वो आखिर किस जाति को तरजीह दें
और ऐसे में पार्टियाँ caste neutral
politics का विकल्प चुनती हैं मतलब वो ऐसे व्यक्ति को
मुख्यमंत्री बना देती है जो उस राज्य की किसी भी प्रमुख जाति से न आता हो और यह
सिर्फ मुख्यमंत्री के लिए ही नहीं है, अन्य राजनीतिक पदों के लिए भी पार्टियाँ
इसका लगातार इस्तेमाल करती आई हैं. इससे पार्टी कि यह दुविधा भी ख़त्म हो जाती है
कि किसी एक जाति के व्यक्ति को तरजीह देने से बाकी के जाति के लोग नाराज हो
जायेंगे. तो यदि आप भी इस बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि आप जिस जाति से आते हैं
उसकी संख्या आपके क्षेत्र में काफी कम है और इससे आपको राजनीतिक नुकसान हो सकता है
तो यह चिंता छोड़ दें क्यूंकि ये राजनीति है और यहाँ कब आपका कमजोर पक्ष सबसे मजबूत
पक्ष बनकर उभर जाएगा, यह कोई नहीं जानता
Careers in Politics
अब आते हैं दुसरे सवाल पर, पब्लिक स्पीकिंग मतलब
भाषणकला, कई लोगों को ये लगता है कि पब्लिक स्पीकिंग वो हथियार है जिससे कोई
व्यक्ति राजनीति में एक मजबूत लीडर के रूप में स्थापित हो सकता है पर क्या ये सच
है? इस सवाल के जवाब के लिए थोड़ी सी जहमत आप भी उठायें और देखें कि पिछले बीस
सालों में जो लोग मुख्यमंत्री या कैबिनेट मंत्री बनाए गए हैं उनकी पब्लिक स्पीकिंग
कैसी थी, क्या उस वक्त उन्हीं के जैसे ऐसे लोग नहीं थे जिनकी पब्लिक स्पीकिंग काफी
बेहतर थी, क्या उस वक्त कोई ऐसा नहीं था जो मुख्यमंत्री बनाए गये व्यक्ति से
ज्यादा प्रभावशाली और जनता के बीच ज्यादा लोकप्रिय था और यदि आप ज्यादा पीछे नहीं
जाना चाहते तो हाल के दिनों में भी ऐसी घटनाएँ हुई हैं जिनका आप स्वयं विश्लेषण कर
सकते हैं, आप देख सकते हैं कि अपेक्षाकृत कम प्रभावशाली व्यक्ति को पार्टियाँ
मुख्यमंत्री बना देती हैं जबकि उनसे ज्यादा प्रभावशाली लोग अपनी बारी का इंतज़ार ही
करते रह जाते हैं, आखिर क्यूँ होता है ऐसा
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