सबसे बड़ा सवाल – How to get into politics
सबसे बड़ा सवाल कि क्या राजनीति
बिना पैसों के संभव है? क्या आज की राजनीति में वैसे लोग आगे बढ़ सकते हैं जो
साधारण परिवार से आते हैं. आज इस विषय पर चर्चा करने के पीछे का मकसद सिर्फ इतना है कि आप सबों के मन में और खासकर युवाओं
के मन में जो एक गलत धारणा बैठती जा रही है कि राजनीति बिना पैसों के हो ही नहीं सकती,
उसे बदला जाये क्यूंकि अक्सर ये देखा जाता है कि युवा पुरे राजनीतिक परिपेक्ष्य को
देखे बिना सिर्फ सुनी सुनाई बातों को मानकर ये धारणा बैठा लेते हैं कि राजनीति तभी
की जा सकती है जब आपकी जेब में भरपूर पैसे हों, हाँ ये बात सच है कि राजनीति में
पैसों की जरुरत होती है पर जितने पैसों की जरुरत होती है उसे जुटाने के लिए हमारे
पास कई तरीके भी होते हैं बस जरुरत है तो उन तरीकों को समझने की. आप जाकर किसी भी
सांसद या विधायक से पूछ लो, यदि वो आपको राजनीति में पैसों के पीछे का सच बताने को
तैयार हो जाएँ तो इतना जरुर बताएँगे कि राजनीति सिर्फ पैसों के बल पर नहीं होती
है, न ये आज से 50 साल पहले होती थी और न ही आज होती है और इसे बेहतर तरीके से
समझने के लिए इन आंकड़ों पर गौर फरमाएँ
Politics with Pankaj |
Political Leadership के लिए इसे जरुर समझें
मान लो कि किसी व्यक्ति को
लोकसभा सांसद का चुनाव लड़ना है और वो पैसों के बल पर चुनाव जीतना चाहता है अब आप
खुद ही देख लो कि उसे कितने पैसों की जरुरत होगी. किसी भी लोकसभा चुनाव को जीतने
के लिए औसतन 5 लाख वोट की जरुरत होती है और कहीं-कहीं तो 8 से 10 लाख तक वोट की
जरुरत होती है लेकिन थोड़ी देर के लिए हम कम से कम 5 लाख वोट का ही उदाहरण पकड़ कर
चलते हैं तो 5 लाख वोट को खरीदने के लिए कितने पैसों की जरुरत होगी, मान लो वो नेता
एक वोट के 500 रूपए खर्च करता है तो 5 लाख वोट के लिए उसे 25 करोड़ खर्च करने होंगे.
और इतना ही नहीं इसके बाद भी उसे और भी पैसे खर्च करने होंगे - खुद की ब्रांडिंग
पर, चुनाव प्रबंधन पर और चुनावी प्रचार प्रसार पर भी, अब बड़ा सवाल है कि क्या आपको
लगता है कि लोकसभा का चुनाव लड़ने वाला कोई प्रत्याशी इतने पैसे खर्च कर सकता है या
करता है और अगर ऐसा नहीं है तो फिर सवाल खड़ा होता है आखिर क्यूँ हर जगह ये चर्चा
होती है कि राजनीति बिना पैसों के संभव नहीं
Political Career बनाने के लिए इसे भी जानें
इस चर्चा का कारण लोगों की
वो ग़लतफ़हमियाँ हैं जो धीरे-धीरे फैलती चली गई और फिर उसे हम सच भी मानने लगे क्यूंकि
राजनीति में उतने पैसे खर्च नहीं होते हैं, जितना आप मानकर बैठे हो, आपके मन में
जो ये धारणा बैठी है कि लोग वोट खरीदकर चुनाव जीतते हैं, वो बिलकुल गलत है, हाँ 2
से 4 प्रतिशत वोट भले इधर उधर हो जाएँ पर अंत में जीतेगा वही जिसे जनता चाहेगी
इसलिए अपने पोलिटिकल कैरियर को आगे बढ़ाते हुए हमेशा एक बात ध्यान रखना कि राजनीति
में पैसे का महत्व सिर्फ उतना ही है जितना गाडी में पेट्रोल का, न उससे कम और न
उससे ज्यादा. अगर आपका इंजन ठीक नहीं होगा तो गाड़ी नहीं चलेगी फिर चाहे जितनी
मर्ज़ी पेट्रोल रख लो और इंजन कौन है- “जनता”. जी हाँ, जनता ही किसी राजनेता की
राजनीतिक गाड़ी की इंजन होती है और यदि ऐसा नहीं होता तो संसद में हमें सिर्फ बड़े-बड़े
धनकुबेर और उनके बच्चे ही दिखाई देते, पर क्या ऐसा है? और सबसे मजेदार बात तो यह है
कि यदि ऐसा होता तो ये धनकुबेर राज्यसभा में जाने की जुगत क्यूँ लगाते, सीधे
लोकसभा चुनाव में उतरते और पैसों के बल चुनाव जीतकर संसद में पहुँच जाते
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