जनता को साथ जोड़ने का सबसे पावरफुल फार्मूला
चुनाव लड़ने के लिए 5000 से 10000 तक के लोगों की एक बड़ी टीम
की जरुरत होती है, आखिर कैसे बनती है ये टीम. किस रणनीति से तैयार की जाती है इतनी
बड़ी टीम ?
जब भी कोई राजनेता चुनाव जीतने के बाद अपनी जीत का श्रेय अपनी टीम को देता है
तो हमारी नज़र जाती है उसके पीछे खड़ी उस टीम पर जिसे देखकर हम सोचने लग जाते हैं कि
आखिर इतनी बड़ी टीम हम कैसे खड़ी कर पाएंगे क्यूंकि चुनाव तो बिना टीम के जीतने की
हम कल्पना भी नही कर सकते, तो आइए समझते हैं कि बड़े राजनेता कैसे तैयार करते हैं
अपनी टीम
Compounding Effect |
राजनीति में टीम दो तरह से खड़ी की जाती है पहला पैसों के बल पर और दूसरा उस
फ़ॉर्मूले से जिसका इस्तेमाल कर अभी तक कई बड़े राजनेताओं ने अपनी एक मजबूत और सशक्त
टीम खड़ी की. राजनीति में आपको कई ऐसे राजनेताओं के उदाहरण मिल जायेंगे जो गरीब या
मध्यमवर्गीय परिवार से तो जरुर आये पर यहाँ आकर उन्होंने अपनी एक ऐसी मजबूत टीम
तैयार की जिसकी बल पर वे चुनाव दर चुनाव जीतते चले गये. नरेन्द्र मोदी से लेकर
ममता बनर्जी तक और मुलायम सिंह यादव से लेकर बाल ठाकरे तक सभी ने उस फोर्मुले का बखूबी
इस्तेमाल किया और राजनीति के शिखर पर अपनी जीत का परचम लहराया, आज जिस रणनीति की मैं बात
करने जा रहा हूँ यकीन मानो उसका इस्तेमाल राजनीति में सिर्फ 1 प्रतिशत लोग करते
हैं और जो करते हैं वो 10 सालों में खुद को एक बड़े राजनेता के रूप में स्थापित भी
कर लेते हैं तो क्या है ये रणनीति ?
How to become politician in India
पहली रणनीति है Compounding Effect और दूसरी है Twitter Effect
ये दोनों रणनीतियाँ कमाल के भी हैं और एक दुसरे से जुड़े हुए भी हैं और जब आप
इस लेख को पूरा पढेंगे तो सोच में पड़ जायेंगे कि आखिर इतनी आसान तकनीक को मैं
अभीतक समझ क्यूँ नहीं पाया और ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्यूंकि आपके आसपास का हर
सांसद या विधायक इस तकनीक का लगातार इस्तेमाल कर रहा है पर हमारी दिक्कत ये है कि
हम इसे देखना ही नही चाहते, समझना ही नही चाहते और यदि आपको इस तकनीक को बेहतर
तरीके से समझना है तो सिर्फ मेरी इस केस स्टडी पर मत डिपेंड रहो, खुद ही किसी
सांसद या विधायक को सिर्फ तीन महीने तक ऑब्जर्व करो और देखो कि क्या उसने कभी भी
राजनीति के शुरूआती दौर में जनता को अपने साथ जोड़ने या अपनी एक बड़ी टीम बनाने पर
फोकस किया, जवाब मिलेगा नहीं, जी हाँ, कोई भी बड़ा राजनेता कभी भी अपने साथ जनता को
जोड़ने पर फोकस नहीं करता, वह फोकस करता है तो सिर्फ अपने साथ चार पाँच लोगों को
जोड़ने पर और बाद में जनता उसके साथ खुद ब खुद ही जुड़ती चली जाती है, आप चाहे किसी
सांसद या विधायक को देख लो उसके आसपास सिर्फ आपको चार-पांच लोग ही मिलेंगे जिसपर
वो पूरा विश्वास करता है और यही वो चार-पांच लोग होते हैं जो उसके लिए 5 से 10
हज़ार लोगों की एक बड़ी टीम खड़ी कर देते हैं और इसी तकनीक को कहते हैं Compounding
Effect - दुनिया का आठवां आश्चर्य
Political Leadership
और कैसे करते हैं ये बड़े राजनेता इस आठवें आश्चर्य का इस्तेमाल - शुरू के एक
साल ये सांसद या विधायक अपने साथ सिर्फ चार-पांच लोगों को जोड़ते हैं और उन्हीं पर
काम करना शुरू करते हैं उन्हें वे इस कदर
अपना बना लेते हैं कि वो जब भी सोचे तो सिर्फ अपने नेता के बारे में सोचें, जब भी
बात करें सिर्फ अपने नेता के बारे में बात करें. ये चार पांच लोग ही उनके रूट (पेड़
का जड़) होते हैं और हम सब जानते हैं कि रूट जितना मजबूत होगा फ्रूट्स उतना ही मीठा
होगा. ये बड़े नेता हमेशा अपने रूट पर ध्यान देते हैं क्यूंकि उन्हें पता होता है
कि अगर उन्हें विशाल पेड़ चाहिए, विशाल जनसमर्थन चाहिए तो उन्हें अपने पांच लोगों
की इस टीम को मजबूत बनाना होगा क्यूंकि यही पांच लोग पांच हज़ार लोगों की टीम खड़ी
करेंगे
एक साल इन पांच लोगों पर की गयी मेहनत अगले 9 सालों में उनके लिए इतनी बड़ी टीम
खड़ी कर देती है जिसकी आप कल्पना भी नही कर सकते क्यूंकि ये 5 लोग जहाँ जाते हैं
उनके बारे में ही बात करते हैं, सोशल मीडिया पर उनके बारे में लिखते हैं, उनके
अच्छे कार्यों से जुडी पोस्ट डालते हैं और फिर धीरे धीरे ये पांच लोग 25 लोगों को,
25 लोग 250 लोगों को और 250 लोग 2500 लोगों को आपके साथ जोड़ते चले जाते हैं और
दुनिया में इससे बड़ा और अच्छा प्रचार का कोई माध्यम नहीं हो सकता जब लोग आपके बारे
में बात करने लगे क्यंकि इसका सीधा असर क्षेत्र की जनता पर पड़ता है, इस प्रकृति का
ये सबसे बड़ा सच है कि जब दुसरे लोग आपके बारे में बात करते हैं तो सबका ध्यान आपकी
तरफ आकर्षित होता है, इसे आम भाषा में सोशल प्रूफ भी कहा जाता है और इस सोशल प्रूफ
का इस्तेमाल कई कंपनियाँ अपने विज्ञापनों में भी धड़ल्ले से करती हैं
Career in politics in India
हम अकेले ही चले थे जानिब-ए-मंजिल मगर, लोग साथ आते गये कारवाँ बनता गया. कारवाँ
हमेशा Compounding Effect से ही बनते हैं पर यहाँ दिक्कत ये आती है कि शुरुआत के दो तीन
सालों में हमें रिजल्ट वैसा नहीं मिल पाता है जैसा हम चाहते हैं क्यूंकि शुरुआत
में बहुत कम ही लोग हमारे साथ जुड़ पाते हैं और हमारी समस्या ये होती है कि हमें
छोटे रिजल्ट अच्छे नही लगते हैं जिसके कारण हम अपने मुख्य चार-पांच लोगों पर काम
करना ही बंद कर देते हैं, उन्हें ट्रेनिंग देना ही बंद कर देते हैं और फिर लोगों
से पूछते फिरते हैं कि कैसे अपनी एक बड़ी टीम बनायें और जनता को अपने साथ कैसे
जोड़ें, एक बात गाँठ बाँध लो यदि आप ऐसे परिवार से आते हैं जिसका कोई पोलिटिकल
बैकग्राउंड नही है तो आपके पास सिर्फ यही एक तकनीक है अपनी टीम बनाने का और लोगों
को अपने साथ जोड़ने का. अगर आपने ये कर लिया तो अगले कुछ वर्षो के बाद आप चुनाव
लड़ने की भी स्थिति में आ जाओगे और जीतने के भी
Twitter effect |
How to get involved in local politics
अब हमारा अगला फार्मूला जो काफी दिलचस्प और प्रभावशाली है, इसे ट्विटर इफ़ेक्ट
भी कहा जाता है. यह फार्मूला इतना आसान है कि आप चाहे राजनीति के शुरूआती दौर में
क्यूँ न हों, इसका इस्तेमाल कर जनता के बीच अपनी गहरी पकड़ बना सकते हैं, बस इसके
लिए आपके पास एक मोबाइल होना चाहिए, आज हर नेता ट्विटर पर उपलब्द है चाहे वो आपके
राज्य का मुख्यमंत्री हो, मंत्री हो, कोई सांसद या विधायक हो या फिर डीसी, एसपी
जैसे पदाधिकारी हों, हर कोई ट्विटर पर उपलब्द है और आपको इसी चीज का इस्तेमाल खुद
के लिए करना है, और क्या करना है आपको, बस आपको अपने लोकसभा या विधानसभा के उन
मुद्दों पर नज़र रखनी है जिससे आपके क्षेत्र की जनता प्रभावित होती हो या फिर ऐसे
मुद्दे जो काफी संवेदनशील हों और जैसे ही आपको लगे कि जनता के हित में इस मुद्दे
को उठाया जा सकता है तो आप संबंधित नेता या अधिकारी को टैग करके उस मुद्दे को
ट्वीट कर दें, यदि आपका मुद्दा सही होगा तो वो नेता या अधिकारी जिसको आपने अपने
ट्वीट में टैग किया है वह आपको रिप्लाई जरुर करेगा और इस मुद्दे पर प्रशासनिक
कार्यवाही भी की जाएगी. आजकल नेता या प्रशासनिक अधिकारी हर ट्वीट को काफी गंभीरता
से लेते हैं ताकि उनपर कोई सवाल न खड़ा हो
अक्सर देखा जाता है कि ट्विटर अकाउंट बनाते के साथ हम कई लोगों को फॉलो करना
शुरू कर देते हैं ऐसा बिल्कुल न करें, आप सिर्फ उन्हें ही फॉलो करें जो आपके काम
के हों अर्थात् जिसको टैग करके आप मुद्दे उठा सकते हों, ये आपके क्षेत्र या जिले
के प्रशासनिक अधिकारी भी हो सकते हैं या फिर सांसद, विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री
भी हो सकते हैं, ट्विटर पर कितने लोग आपको फॉलो करते हैं इस बात की तो बिलकुल
चिंता ना करें, आप सिर्फ मुद्दे उठाते रहें और जब भी आपके मुद्दों पर सम्बंधित
प्रशासनिक अधिकारी या नेता का रिप्लाई आये, उसका स्क्रीनशॉट लेकर अपने फेसबुक,
इन्स्टाग्राम, व्हाट्सएप ग्रुप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर शेयर करते रहें,
जैसे-जैसे आप इस प्रक्रिया को करते जायेंगे वैसे वैसे राजनीतिक गलियारों में और
जनता के बीच आपकी चर्चा बढती जाएगी. हो सकता है कि शुरू के डेढ़ दो वर्षों तक आपको
अपने इस काम का कोई परिणाम मिलता हुआ ना दिखे पर इसके बाद Compounding
Effect अपना असर दिखाना शुरू करेगा.
How does twitter influence politics
इसलिए ट्विटर का इस्तेमाल करते हुए हमेशा Compounding
Effect को ध्यान में रखते हुए डेढ़ दो वर्षों तक लगातार काम करते रहो क्यूंकि इसके
बाद आपको परिणाम कल्पना से परे मिलेंगे. आप मुद्दों को उठाने के लिए चाहो तो R.T.I का भी इस्तेमाल कर सकते हो
पर एक बात ध्यान में रखना आपके तथ्य बिलकुल सटीक होने चाहिए, यदि आपके मुद्दों के
अंतर्गत आने वाले तथ्य सटीक होंगे तो कुछ समय बाद कई मीडिया के लोगों का ध्यान
आपकी तरफ आकर्षित होगा और वे भी आपको फॉलो करने लगेंगे और यहीं से शुरू होगी आपकी
जीत की शानदार यात्रा. याद रखना जब आपके ट्वीट को गंभीरतापूर्वक लिया जाने लगेगा
तो आपके द्वारा प्रस्तुत किये के तथ्यों पर मीडिया की भी नज़र होगी और यहाँ आपके द्वारा की गयी
एक गलती आपकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह खड़ी कर सकती है और जनता उस व्यक्ति को
कभी पसंद नही करती जिस व्यक्ति के विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो जाये, इसलिए
तथ्यों के मामले में हमेशा सावधान और सजग रहें
आज के राजनीतिक परिवेश में नेताओं का जीवन पूरी तरह से सार्वजनिक हो चूका है,
राजनीति भी मोबाइल पर आ चुकी है और जनता भी, इसलिए यदि Compounding
Effect और Twitter Effect का सही इस्तेमाल आपने कर
लिया तो आपका ये सवाल ही ख़त्म हो जाएगा कि जनता को अपने साथ कैसे जोड़ें, पर हाँ ये
तो तय है कि इस पुरे प्रक्रिया में आपको समय लगेगा क्यूंकि ताजमहल एक दिन में नहीं
बना करते हैं, इसके लिए थोड़े धैर्य और ढेर सारे परिश्रम की जरुरत होती है और यदि
आपका लक्ष्य बड़ा है तो संघर्ष तो बड़ा होगा ही.
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