इस्तीफा भी नहीं हुआ और बगावती को दफ़न भी कर दिया! यूं ही सियासत के चाणक्य नहीं कहे जाते शरद पवार
चार दिन तक चला एक सियासी खेल, इस्तीफे का ड्रामा और फिर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस जिसमें घोषणा की जाती है कि शरद पवार अपना इस्तीफा वापस ले रहे हैं, क्या यह सबकुछ ठीक वैसा ही था जैसा दिखाई दे रहा था या फिर राजनीतिक दाँव पेंच के महारथी शरद पवार ने कुछ ऐसी बिसात बिछाई थी जिसमें एक तीर से कई शिकार किए जा रहे थे, आखिर क्या है इस पुरे सियासी ड्रामे का सच? दरअसल यह कहानी शुरू होती है 2 मई 2023 से जब अजित पवार के कई विधायकों संग बीजेपी के साथ हाथ मिलाने की अटकलें चल रही थीं, उस वक्त शरद पवार ने भी यह कहा था कि पार्टी के कुछ नेताओं पर दबाव है, ऐसे में वह व्यक्तिगत रूप निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं पर शरद पवार ने शायद तब से ही यह बिसात बिछानी शुरू कर दी थी जिसका किसी को अंदाजा भी नहीं था और देखते ही देखते राजनीति के चाणक्य ने राजनीतिक रोटी सेंक दी. इस पटकथा का आरंभ भी पवार ने किया था और अंत भी उन्होंने किया, यह अलग बात है कि यह अंत उनके महत्वाकांक्षी भतीजे अजित पवार के लिए ‘शोकांतिका’ की तरह रहा जो मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे थे
इस्तीफे की घोषणा और राजनीतिक भूचाल
बीते दिनों यह चर्चा रही कि अजित पवार एकनाथ शिंदे की तरह एनसीपी को तोड़कर बीजेपी से हाथ मिलाएंगे। चर्चा यह भी थी कि एकनाथ शिंदे की जगह वह राज्य के नए मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन शरद पवार के इस्तीफा देने के बाद अजित पवार पार्टी में पूरी तरह से अकेले पड़ गए।इसके पहले उन्होंने मुहावरेदार अंदाज में कहा था कि ‘अब ‘रोटी पलटने’ का वक्त आ गया है। समय पर रोटी न पलटी जाए तो जल जाने का खतरा रहता है।‘ तब लोग इस मुहावरे के अर्थ भांपने की कोशिश कर रहे थे लेकिन पवार के इस्तीफे ने साफ कर दिया कि उन्होंने तुरूप का इक्का चल दिया है और इस तुरुप के इक्के के बाद सारी पार्टी शरद पवार के साथ खड़ी नजर आई। यहां तक कि जिन विधायकों का अजित के साथ बीजेपी में जाना तय माना जा रहा था, वह भी सहम गए।
शरद पवार ने क्यों वापस लिया इस्तीफा?
पवार की इस अप्रत्याशित घोषणा के बाद उनकी पार्टी में मानो हाहाकार मच गया। पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में मानों चाटुकारिता की होड़-सी लग गई। पवार का इस्तीफा मानो पार्टीजनों के जीवन-मरण का प्रश्न बन गया पर इस ‘अंत’ का अंदाजा हर उस व्यक्ति को था, जो पवार की राजनीति को बारीकी से जानता- समझता है। सवाल सिर्फ इतना है कि जब पवार के नेतृत्व को उनकी पार्टी में कोई चुनौती नहीं थी तो इस्तीफे की नाटक मंचन की जरूरत क्या थी? अमूमन किसी भी पार्टी में शीर्ष नेताओं के इस्तीफे अथवा रिटायरमेंट की एक प्रक्रिया होती है।यह काम सुविचारित और भविष्य की रणनीति को ध्यान में रखकर किया जाता है, उसे पार्टी के कर्णधारों का समर्थन होता है। मसलन भाजपा में लालकृष्ण आडवाणी की जगह नरेन्द्र मोदी को प्रोजेक्ट करने फैसला हुआ तो उसपर व्यापक सहमति बनी थी।
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